।। श्रीकृष्णसप्तकम्।।
( वृत्तम् = चर्चरी । अन्यानि नामानि = हरनर्तनं विबुधप्रिया कुमुद्वती ।प्रतिचरणं 18 अक्षराणि ।)
योगनायक योगगायक योगदायक पाहि माम्
योगपावकदोषनाशक नन्दनन्दन रक्ष माम् ।
हे भयंकर हेऽभयंकर हे जयंकर पाहि माम्
हे नरेश्वर हे नटेश्वर हेऽनघेश्वर रक्ष माम् ।।1।।
योगपावकदोषनाशक नन्दनन्दन रक्ष माम् ।
हे भयंकर हेऽभयंकर हे जयंकर पाहि माम्
हे नरेश्वर हे नटेश्वर हेऽनघेश्वर रक्ष माम् ।।1।।
वेदतारक वेणुवादक वेदनाहर पाहि माम्
सौख्यदायक दुःखहारक सृष्टिरक्षक रक्ष माम् ।
विश्वबालक विश्वपालक विश्वचालक रक्ष्यताम्
विश्वरञ्जक विश्वशोधक विश्वमोचक पायताम् ।।2।।
सौख्यदायक दुःखहारक सृष्टिरक्षक रक्ष माम् ।
विश्वबालक विश्वपालक विश्वचालक रक्ष्यताम्
विश्वरञ्जक विश्वशोधक विश्वमोचक पायताम् ।।2।।
हे युगन्धर हे धुरन्धर हे नगन्धर रक्ष्यताम्
हे सुदर्शनचक्रधारिकवे सुनन्दन पायताम् ।
गोपवल्लभ गोपदुर्लभ गोपयोधर रक्ष माम्
गोपनन्दन गोपचन्दन गोमनोहर पाहि माम् ।।3।।
हे सुदर्शनचक्रधारिकवे सुनन्दन पायताम् ।
गोपवल्लभ गोपदुर्लभ गोपयोधर रक्ष माम्
गोपनन्दन गोपचन्दन गोमनोहर पाहि माम् ।।3।।
कालियाधर कंसमारक पार्थबोधक मध्वरे
पापहारक तापनाशक पायतां वर भूपते ।
नर्तकोत्तम साधुसेवक मन्दहास्य लसद्वर
नीतिपण्डित तत्त्वविद्वर पायतां जनभूपते ।।4।।
पापहारक तापनाशक पायतां वर भूपते ।
नर्तकोत्तम साधुसेवक मन्दहास्य लसद्वर
नीतिपण्डित तत्त्वविद्वर पायतां जनभूपते ।।4।।
पाण्डवप्रिय पाण्डवप्रिय गोधनप्रिय तुष्यताम्
देवकीवसुदेवनन्दन नन्दपुत्र सुगीयताम् ।
पाञ्चजन्यसुवादक प्रियद्रौपदीधन रक्ष्यताम्
भारतीयसुसंस्कृतिप्रिय भारती मम दीयताम् ।। 5।।
देवकीवसुदेवनन्दन नन्दपुत्र सुगीयताम् ।
पाञ्चजन्यसुवादक प्रियद्रौपदीधन रक्ष्यताम्
भारतीयसुसंस्कृतिप्रिय भारती मम दीयताम् ।। 5।।
श्यामसुन्दर हास्यसुन्दर चित्तपावन लस्यताम्
सारथे जय दामिनीनवनीतचोर सुभुज्यताम् ।
पूतनायक पूतनाहन पूतनागर पूयताम्
यामिनीधन भामिनीवर कामिनीमद जीयताम् ।।6।।
सारथे जय दामिनीनवनीतचोर सुभुज्यताम् ।
पूतनायक पूतनाहन पूतनागर पूयताम्
यामिनीधन भामिनीवर कामिनीमद जीयताम् ।।6।।
भुक्तिदायक मुक्तिदायक शक्तिदायक माहरे ।
गोपतारक गोपिकेश्वर गोपनायक श्रीहरे ।
एहि माधव एहि केशव चित्तहारक रक्ष्यताम्।
रुक्मिणीवर राधिकेश्वर गोकुले मम नन्द्यताम् ।।7।।
गोपतारक गोपिकेश्वर गोपनायक श्रीहरे ।
एहि माधव एहि केशव चित्तहारक रक्ष्यताम्।
रुक्मिणीवर राधिकेश्वर गोकुले मम नन्द्यताम् ।।7।।
।।इति श्रीहरिविरचितं श्रीकृष्णसप्तकं सम्पूर्णम् ।।
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